रविवार, 19 जुलाई 2015

सपने होते हैं 
कभी देखे नहीं 
शायद आस्था जैसा कुछ 
या बिलकुल वैसे, जैसे 
खेतों में फसल पक जाने के बाद 
छूते हैं उनको बोने वाले हाथ
या नौ माह के बाद
एक नवजात को पकडे हाथ
सपने प्रश्न होते हैं
कभी उत्तर नहीं
शायद जीवन की त्वरा जैसा कुछ
या बिलकुल वैसे, जैसे
अँधेरी खोह में रहते हुए
अचानक रौशनी में चौधियाएं आँखेँ
या आखिरी साँसें उखड़ने से पहले
पसीने से लतपथ चहरे पर आँखें
सपनों के मूर्त रूप नहीं
उनका एक माया जाल है
शायद जिनमें जीवन जैसा कुछ
क्योंकि इनके बाद ही
ज़िन्दग़ी के धुंधले पड़ते रंग
अपनी पहचान पक्का करते हैं
दरसअल सपने अमानवीय समय में
एक मानवीय रचना हैं .//// smile emoticon

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